(प्रेरणा पुस्तक से – डॉक्टर स्वामी देवव्रत सरस्वती)
सदा उत्साहित रहने के उपाय किसी कार्य को करने का जोश , उमंग , होंसला उत्साह कहलाता है । लक्ष्मी ऐसे पुरुष का ही वरण करती है ।
उत्साह सम्पन्नमदीर्घ सूत्रं क्रिया विधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम् । शूरं कृतज्ञं दृढ़सौहृदंच लक्ष्मी स्वयं याति निवास हेतोः ।।
जो सदा उत्साहित रहता है , कार्य को लटकाता नहीं है , कार्य करने की विधि को जानता है , जिसमें किसी प्रकार का दुर्व्यसन नहीं है , शूरवीर किये हुये उपकार को मानने और जिसकी मित्रता दृढ़ है ऐसे पुरुष के यहाँ लक्ष्मी स्वयं निवास करने के लिये आती है । उत्साहित रहने के लिये निम्न सूत्र उपयोगी हैं
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या जब धारा ही प्रतिकूल न हों ।
प्रसन्नता पूर्वक कार्य करने वालों की कठिनाईयां अपने आप • सुलझती जाती हैं । अंग्रेजी में कहावत है- well begin is half done .
नर हो न निराश करो मन को काम करो कुछ काम करो । धैर्य न टूटे पड़े चोट सौ घन की , यही अवस्था होनी चाहिये निजमन की ।
समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे भी मिलेंगे जिन्होंने अपने पुरुषार्थ से प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया है । जिस व्यक्ति के कार्य से आप प्रभावित हैं उसी को अपना आदर्श मान कार्य में जुट जायें । महापुरुषों का जीवन चरित्र पढ़े ।
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती । कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
४. अधिक महत्त्वाकांक्षी न बनें–
यद्यपि बड़ा लक्ष्य बनाना कोई बुरा नहीं है । परन्तु याद रखें – शेखचिल्ली के समान सपने देखना उपहास का पात्र बनना है । कोई बड़ा कार्य करना है तो उसे टुकड़ों में बाटं कर करें । जब कार्य का एक भाग पूरा हो जाये तो फिर दूसरा – तीसरा करने से बड़ा कार्य भी आसान हो जायेगा । किसी भी कार्य की योजना बनाते समय अपनी क्षमता , संसाधन और सहायकों का मूल्यांकन कर लेने से सफलता की अधिक सम्भावना रहती है ।
५. वर्तमान में जीयें-
भूतकाल से शिक्षा लेकर वर्तमान में कार्य करते हुये भविष्य बनायें । जो व्यतीत हो चुका वह समय अब आना नहीं है । इसलिये उसके लिये शोक करना या चिन्तित होना व्यर्थ है । अभी जो आगे आने वाला है उस समय परिस्थितियाँ जैसी रहेंगी वैसा विचार कर लिया जायेगा । आपके सामने वर्तमान है वही आपका है । उसे ही सुखद , सुन्दर सुव्यवस्थित बनाने का प्रयत्न करें । प्रतिदिन प्रात : यह चिन्तन करें । कि आज का दिन बहुत ही अच्छी प्रकार से व्यतीत होगा ।
६. तनाव रहित रहें-
तनाव व्यक्ति और वातावरण के मध्य होने वाली क्रिया और प्रतिक्रिया को कहते हैं । कुछ सीमा तक तनाव हमें परिस्थितियों
हमें मनुष्य जन्म शुभ कर्म करने और सुख , आनन्द की प्राप्ति के लिये मिला है । जो लोग निराशा की बात करते हैं वे जीवन संग्राम में असफल रहें हैं । उनके साथ रहने से आपका उत्साह , ऊर्जा और उमंग क्षीण हो जायेगी । हँसते और प्रसन्न रहने वाले के साथ सभी रहना चाहते हैं और रोनी सूरत वालों के समीप कोई भी नही भटकता । जहाँ का वातावरण नकारात्मक लोगों से घिरा है उससे दूर रहना ही अच्छा है ।
प्रत्येक व्यक्ति सम्मान चाहता है । आप दूसरों का सम्मान करेंगे तो आपको भी सम्मान ही मिलेगा । आम बोने वाले को आम और बबूल लगाने वाले को कांटे ही मिलेंगे । किसी के जो वास्तविक गुण हैं उनकी चर्चा दूसरों के सामने अवश्य करें ।
11 सेवा कार्यों में सहयोग करें।
अपना कुछ समय निकालकर प्रात : सायं ईश्वर चिन्तन करें । ईश्वर आनन्द स्वरूप है और प्रत्येक अच्छे कार्य में सहायता करता है । वह अशरण का शरण और शान्ति का धाम है । जैसे आप दूसरे व्यक्तियों से बात करते हैं वैसे ही अपने मन की बात ईश्वर के समक्ष रखिये और समाधान करने की प्रार्थना कीजिये ।
प्रेरणा – डॉक्टर स्वामी देवव्रत सरस्वती