( प्रेरणा पुस्तक से -डॉक्टर स्वामी देवव्रत सरस्वती )
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सही निर्णय कैसे लें ?
१. संकल्प विकल्प मन करता है और निर्णय बुद्धि लेती है । सही निर्णय लेने के लिये बुद्धि का सात्विक और शान्त होना आवश्यक है । आवेश , क्रोध या भावावेश में लिया गया निर्णय कई बार पराजय , अपमान या उपहास का पात्र बना देता है ।
२. जो कुछ करें उस पर सभी पहलुओं से विचार करें । उसके दीर्घकालीन लाभ – हानि का आकलन करके ही आगे कदम बढ़ायें ।
बिना विचारे जो करे सो पीछे पछताय । बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाय ।।
३.
आपके साहसिक निर्णय लेने से यदि पहले के कार्य प्रभावित होते हैं । अथवा उलट फेर होने के कारण अनेक अड़चनें आती हैं तो उनसे विचलित न होवें । श्रेयांसि बहु विध्नानि अच्छे कार्यों में बाधायें आती ही हैं । स्मरण रहे बाधायें कब रोक सकी हैं आगे बढ़ने वालों को ।
४. सही समय पर निर्णय लें । कई बार आप किसी कार्य के विषय में सोचते ही रहते हैं और उतने समय में दूसरा व्यक्ति उस अवसर का लाभ उठाकर आगे बढ़ जाता है । आज कल स्पर्धा का युग है । परन्तु इसका यह अभिप्राय नहीं है कि बिना विचारे आनन – फानन में एकदम निर्णय लें लिया जाये । किसी कार्य का एक अवसर होता है उसे हाथ से न जाने दें ।
५.
अपने हितैषी जनों से परामर्श करें और फिर उस पर शान्त मन से विचार करके ही आगे बढ़ें ।
६.
भावुकता में लिया गया निर्णय कई बार आपत्ति में डाल देता है । अधिक दुःखी या अधिक प्रसन्नता के समय भी निर्णय लेने पर बाद में पछताना पड़ सकता है । इसलिये बहुत गम्भीरता पूर्वक विचार कर ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये । भावनायें अस्थायी होती हैं ।
७.
एक बार जो निर्णय ले लिया उस पर अडिग रहें । बार – बार निर्णय बदलने से व्यक्ति का विश्वास उठ जाता है । जिससे जो प्रतिज्ञा की है । उसे पूरा करने का प्रयत्न करना चाहिये । जैसी हानि प्रतिज्ञा तोड़ने वाले की होती है उसकी क्षति पूर्ति करना सम्भव नहीं है ।
८.
बड़ा निर्णय लेने का साहस करें । यद्यपि लोक में कहावत है हाथी यदि पहाड़ से टकरायेगा तो उसके दाँत ही टूटेंगे । परन्तु इसके अपवाद भी हैं । दिव्य विभूतियाँ अपना मार्ग स्वयं बनाती हैं और वे ऐसा कार्य कर दिखाती हैं जिसे सुनकर लोग दातों में अंगुली दबा लेते हैं । रवीन्द्र नाथ टैगोर कहते हैं । यदि तोर डाक सुने कोई न आशे तबै एकला चलो रे ।
९
योजना बद्ध होकर कार्य प्रारम्भ करें । आपकी योजना से प्रभावित हो दूसरे लोग भी आप से जुड़ जायेंगे यदि आप अपनी योजना का दूसरे लोगों के गले उतार सकें तो फिर सफलता निश्चित है । योजना बद्ध हो कार्य करने से व्यक्ति मानसिक रूप में थकता नहीं है । वह जानता है कि इस कार्य का इतना भाग पूरा हो गया और आगे का कार्य भी इसी प्रकार हो जायेगा । इस से उस व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ कर निश्चिन्तता आ जाती है । कार्य का एक भाग अधूरा छोड़ दूसरा प्रारम्भ कर दिया तो उसकी रूपरेखा बिगड़ जायेगी और लोगों का विश्वास आपसे उठ जायेगा ।
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१०.
चुनोतियों को स्वीकार करें । जीवन संग्राम में कई बार चुनोतियों से दो – दो हाथ करने ही पड़ते हैं । जिन्होनें उन्हें स्वीकार कर संघर्ष किया वे ही सफलता के शिखर पर पहुँच पाते हैं ।
महाराजा रणजीत सिंह विद्रोहियों को दबाने के लिये अटक नदी के तट पर पहुँचे । सरदारों ने कहा महाराज नदी पूरे उफान पर है । अब क्या उपाय किया जाये ? महाराजा रणजीत सिंह ने सब से पहले अपना घोड़ा नदी की ओर बढ़ा दिया और कहा – जिसके मन में अटक है सोई अटक रहा ।
उनको देख सभी की हिम्मत बढ़ गई और देखते ही देखते उनकी सेना ने अटक नदी को पार कर लिया ।
११.
आत्म विश्वास को बनाये रखें- सब से बड़ा बल आत्म विश्वास है जो व्यक्ति को अपने पथ से निचलित नहीं होने देता । ‘ मन के हारे हार है मन के जीते जीत ‘ मनोबल बनाये रखने वाले व्यक्ति के सभी कार्य पूरे होते हैं । यदि आपने कार्य शुभ भावना से प्रेरित होकर प्रारम्भ किया है तो फिर आपको भयभीत होने या बीच में ही कार्य छूट जाने की भावना मन में नहीं आने देनी चाहिये ।
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